जिन शासन तीर्थंकरों, जिनेन्द्रों का शासन है। जिनेन्द्र धर्म से मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है। सौभाग्यशाली है, भगवान महावीर स्वामी के धर्म शासन में हम सभी विद्यमान है। अंतिम श्री धर केवली ने इस कुण्डलपुर की धरा पर सम्पूर्ण कर्मों का नाश कर मोक्ष प्राप्त किया।कुण्डलपुर के पूज्य बड़े बाबा प्रसिद्धि को प्राप्त है। बरसों से लोग यहां दर्शन को आते है। उक्त उद्गार वात्सल्य वारिधि राष्ट्र संत पूज्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज ने विद्याधर (वर्तमान आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज) के 68वें जन्म दिवस पर कुण्डलपुर में आयोजित समारोह में प्रवचन देते हुए व्यक्त किये।
आचार्य श्री ने आगे कहा कि भगवान महावीर धर्मात्मा थे। श्री धर केवली धर्म धारण कर मोक्ष को प्राप्त हुए। इसके बाद सुदीर्घ आचार्य परम्परा सामने है। उनके पद पर चलकर अनेक को मोक्ष मार्ग प्राप्त हुआ। चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी ने बीसवीं शताब्दी मे आचार्य परम्परा को आगे बढ़ाया। कर्नाटक प्रांत के भोज ग्राम ने ऐसी आत्मा भी दी जिनके आभामण्डल में जो भी आया चाहे गृहस्थ जीवन मे रहे हो उन्हाने धर्म को जाना, समझा और सुख के मार्ग को प्राप्त किया। इसी परम्परा में आचार्य श्री वीर सागर जी महाराज, आचार्य श्री शिवसागर जी महाराज, आचार्य श्री धर्मसागर जी महाराज, आचार्य श्री अजितसागर जी महाराज हुए। आचार्य श्री शिवसागर जी महाराज से एक ज्ञान का दीपक प्रज्ज्वलित हुआ। जो आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज कहलाया। एक आत्मा जग जाती है वह जगी आत्मा अनेकों को जगाने का कार्य करती है। श्री भूरामल जी नाम से प्रसिद्ध पंडित थे आचार्य श्री ज्ञानसागर जी जिन्होने आचार्य शिवसागर जी से मुनि दीक्षा ली। दक्षिण भारत में सदलगा ग्राम है, एक भव्य आत्मा ने कर्नाटक प्रांत के भूषण आचार्य श्री देषभूषण जी से व्रत धारण किया और भूषण बन गये, और पहुंचे मुनि ज्ञानसागर जी के पास। उत्तम पात्र मिला उनके पास जो ज्ञान था, शेष उसे आचार्य श्री ज्ञानसागर जी के चरणों में आकर विद्याधर ने प्राप्त किया। ज्ञान के सागर में गोता लगाकर ऐसे पथ पर अग्रसर हो गये आचार्य ज्ञान सागर जी से अजित विद्या प्राप्त कर विद्याधर से विद्यासागर बने, उनके रत्नत्रय के तेज से प्रभावित होकर अनेक आत्मायें प्रज्ज्वलित हुई। अनेक लोगों ने धर्म को जाना, और धर्म के पथ पर चल गये। आचार्य विद्यासागर जी महाराज एवं गणनि आर्यिका ज्ञानमति माता जी दोनो ने ज्ञान की परिपूर्णता को प्राप्त किया और शरद पूर्णिमा से चमके उनके माध्यम से जिन धर्म की प्रभावना हो रही है। उन्होनें अपने जीवन को साधनामय बनाया, मोक्ष मार्ग पर अनेको को चलने योग्य बनाया।
इस अवसर पर आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज एवं आचार्य श्री वर्धमानसागर जी महाराज की अष्ट द्रव्य से पूजन की गई एवं 68 दीपों से आचार्य श्री की आरती की गई। कार्यक्रम का संचालन जयकुमार जलज ने किया। पाद प्रक्षालन कुण्डलपुर कमेटी अध्यक्ष संतोष सिंघई ने कमेटी सदस्यों के साथ किया। चित्र अनावरण महावीर प्रसाद, जयपुर, अजित मिण्डा, उदयपुर, डॉ बी.एल. शाह, अहमदाबाद एवं सुधीर जैन, कटनी ने किया। दीप प्रज्ज्वलन महावीर उदासीन आश्रम के ब्रम्हचारी भाइयो ने किया। इस अवसर डॉ राजेन्द्र गांगरा, डॉ राजीव चैधरी, शांतिलाल पाटनी, जयपुर, पं. महावीर बड़जात्या, अजित पाटनी, कलकत्ता, गोकलचंद, कोमलचंद उदयचंद वीरेन्द्र बड़कुल कुण्डलपुर, मोतीलाल, संदीप शास्त्री रीतेश जैन आदि की उपस्थिति रही।
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